यूनाइटेड पेंशन स्कीम और ओल्ड पेंशन स्कीम में- क्या है अंतर :
OPS vs NPS vs
UPS :-
Old pension Scheme: क्या है ?
और नई यूनाइटेड पेंशन स्कीम से कितना है अंतर
पुरानी पेंशन योजना या ओल्ड पेंशन योजना (OPS )
OPS में रिटायरमेंट सरकारी कर्मचारियों को उनके अंतिम वेतन का 50 प्रतिशत मासिक पेंशन के रूप में मिलता था। डीए दरों में वृद्धि के साथ राशि बढ़ती रहती है। कर्मचारी रिटायरमेंट पर अधिकतम 20 लाख रुपये के ग्रेच्युटी भुगतान के हकदार थे।
पेंशन पाने के लिए कौन पात्र है ?
कोई भी सरकारी कर्मचारी, जो पेंशनयोग्य प्रतिष्ठान में दिनांक 31.12.2003 या उससे पूर्व नियुक्त हुआ है और सरकारी सेवा से 10 वर्ष या अधिक की अर्हक सेवा करने के उपरांत सेवानिवृत्त होता है, तो वह पेंशन के लिए पात्र है
2006 से पूर्व पेंशनभोगियों की पेंशन में 1.1.2006 से संशोधन के संबंध में अधिसूचना सं. 2008 के अनुसार, 1.1.2006 से संशोधित पेंशन, किसी भी स्थिति में, उस पूर्व संशोधित वेतनमान के अनुरूप वेतन बैंड में न्यूनतम वेतन और उस पर ग्रेड वेतन के योग के 50% से कम नहीं होगी, जिससे पेंशनभोगी सेवानिवृत्त हुआ था।
जनवरी 2023 में, दिल्ली हाई कोर्ट ने फैसला सुनाया था कि केंद्रीय सशस्त्र बलों को भी पुरानी पेंशन योजना का लाभ मिलना चाहिए. जिसके लिए 22 दिसंबर 2003 को इस बारे में एक नोटिफिकेशन जारी किया गया था. दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने जुलाई 2023 में हाई कोर्ट के इस फैसले पर अंतरिम रोक लगाई थी
ऐसा करने वाले राज्य राजस्थान, हिमाचल प्रदेश, छत्तीसगढ़, पंजाब और झारखंड थे। अब ओपीएस लाने वाले छत्तीसगढ़ और राजस्थान में सरकारें बदल चुकी हैं। कागजों में इन सभी राज्यों में कागजों में पुरानी पेंशन लागू है
वित्तीय अस्थिरता - सरकारी राजस्व में व्यय का एक बड़ा हिस्सा सेवानिवृत्त कर्मचारियों को पेंशन लाभ के रूप में दिया जाता है और इसलिए इसे बड़ा आर्थिक दायित्व माना जाता है, जिससे "सरकारी संस्थाओं की वित्तीय सुदृढ़ता" पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ने की संभावना है। तथा इसमें सिर्फ सरकार की ओर से अंश दान (भुगतान ) किया जाता है, वेतन भोगी या कर्मचारी का इसमें योगदान नहीं होता है .
ओपीएस जैसी परिभाषित लाभ (डीबी- डिफाइंड बेनिफिट्स ) योजना में पेंशन एक परिभाषित सूत्र पर आधारित होती है, जिसके मापदंडों में वेतन का प्रतिशत या सेवा के वर्षों के अनुसार वेतन का प्रतिशत या सेवा के प्रति वर्ष एक समान दर हो सकती है। पेंशनभोगियों के लिए सुरक्षित आय के प्रावधान के साथ सरल प्रशासन इस योजना का लाभ है जबकि नियोक्ता, यानी इस मामले में सरकार जोखिम उठाती है। पेंशन की शुद्ध डीबी या पीएवाईजी प्रणाली होने से सरकारी वित्त पर भारी लागत आती है। यह योजना गैर-अंशदायी है, यानी श्रमिक अपने कामकाजी जीवन के दौरान योगदान नहीं करते हैं।
New Pension
Scheme:NPS
एनपीएस जैसी परिभाषित अंशदान (डीसी -डिफाइंड कंट्रीब्यूशन ) योजना एक प्रकार की योजना है जिसमें लाभार्थी अपनी सेवा के दौरान सेवानिवृत्ति निधि में योगदान देता है और प्राप्त होने वाली पेंशन उसकी सेवानिवृत्ति के समय पेंशन निधि में शेष राशि पर आधारित होती है। निधि शेष व्यक्तिगत योगदान और समय अवधि में निधि के निवेश पर अर्जित उपार्जित उपज का योग है। डीसी योजना पेंशनभोगी के लिए अधिक लचीला और आसान पोर्टेबल सेवानिवृत्ति लाभ प्रदान करती है। भारत के संदर्भ में, सेवानिवृत्ति पर लाभ की सीमा कर्मचारी के योगदान की मात्रा के साथ-साथ सरकार के योगदान और उस पर मिलने वाले रिटर्न पर निर्भर करती है, जबकि निवेश का जोखिम कर्मचारियों द्वारा वहन किया जाता है।
चूंकि पेंशन, सेवानिवृत्ति की औपचारिक आयु तक निरंतर सेवा के लिए एक पुरस्कार है, साथ ही वृद्धावस्था में सामाजिक सुरक्षा का एक रूप भी है, इसलिए भारत ने पुनर्गठित पेंशन का समर्थन किया, जिससे डीबी योजना से डीसी योजना की ओर कदम बढ़ाकर सरकारी कर्मचारियों के सेवानिवृत्ति लाभ और अर्थव्यवस्था पर वित्तीय बोझ के बीच संतुलन सुनिश्चित किया जा सके।
पेंशन सुधार के पक्ष में तर्क : क्यों है जरूरी ?
वित्तीय अस्थिरता : कम से कम 50 फ़ीसदी निश्चित पेंशन
"कर्मचारियों की एक मांग थी कि उन्हें एक निश्चित रकम पेंशन के रूप में चाहिए, जो वाजिब मांग थी."
ये रक़म रिटारयमेंट के ठीक पहले के 12 महीनों के औसत मूल वेतन का 50 फ़ीसदी होगी. इसके लिए शर्त ये है कि कर्मचारी ने 25 साल की सेवा पूरी की हो.
इससे कम वक्त (10 साल से अधिक और 25 साल से कम) तक सेवा की है तो रकम भी उसी हिसाब से होगी.
निश्चित फैमिली पेंशन: किसी कर्मचारी की सेवा में रहते हुए मृत्यु होने की स्थिति में परिवार (पत्नी) को 60 फ़ीसदी पेंशन के रूप में मिलेगा.
न्यूनतम निश्चित पेंशन: 10 साल तक की न्यूनतम सेवा की स्थिति में कर्मचारी को कम से कम 10 हज़ार रुपये प्रति माह पेंशन के रूप में दिए जाएंगे.
महंगाई के हिसाब से व्यवस्था: कर्मचारी और फेमिली पेंशन को महंगाई के साथ जोड़ा जाएगा. इसका लाभ सभी तरह की पेंशन में मिलेगा यानी कर्मचारियों की पेंशन में महंगाई इंडेक्शेसन को शामिल किया जाएगा. ये महंगाई राहत ऑल इंडिया कंज्यूमर प्राइज़ेस फ़ॉर इंडस्ट्रियल वर्कर्स के इंडेक्स पर आधारित है. यह व्यवस्था मौजूदा समय में सेवारत कर्मचारियों के लिए है.
ग्रैच्युटी के अलावा नौकरी छोड़ने पर एकमुश्त रक़म दी जाएगी
इसकी गणना कर्मचारियों के हर छह महीने की सेवा पर मूल वेतन और महंगाई भत्ते का दसवां हिस्से के रूप में होगी. इस रकम से कर्मचारियों की निश्चित पेंशन पर कोई असर नहीं होगा.
अश्विनी वैष्णव ने कहा कि इस स्कीम का भार कर्मचारियों पर नहीं पड़ेगा यानी कर्मचारियों पर इसका भार नहीं पड़ेगा.
अश्विनी वैष्णव ने कहा, "पहले कर्मचारी इसके लिए 10 फ़ीसदी का अंशदान करते थे और केंद्र सरकार भी इसके लिए 10 फ़ीसदी का अंशदान करती थी."
2019 में सरकार ने सरकारी योगदान को 14 फ़ीसदी कर दिया था. अब सरकार के अंशदान को बढ़ाकर 18.5 फ़ीसदी कर दिया जाएगा."
सरकारी राजस्व का एक बड़ा हिस्सा सेवानिवृत्त कर्मचारियों को पेंशन लाभ के रूप में दिया जाता है और इसलिए बड़ा आर्थिक दायित्व होने से इसका "सरकारी संस्थाओं की राजकोषीय सुदृढ़ता" पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ना निश्चित है।
वर्ष 2001-02 के लिए भारत के केंद्रीय बजट में स्वीकार किया गया कि सरकार के लिए पेंशन दायित्व "अस्थायी असंतुलित अनुपात तक पहुँच गया है"।
बढ़ती पेंशन देनदारियों को पूरा करने की राज्यों की क्षमता राजस्व वृद्धि और घटे हुए राजस्व व्यय के सीधे आनुपातिक है। लंबे समय तक पेंशन की भारी लागत अर्थव्यवस्था की राजकोषीय स्थिरता पर चिंता पैदा करती है और समस्या की गंभीरता को देखते हुए, मौजूदा पेंशन योजना में संरचनात्मक परिवर्तन आवश्यक प्रतीत होता है।
पेंशन व्यय के लिए साल-दर-साल बढ़ते बजटीय आवंटन को कई कारकों के लिए जिम्मेदार ठहराया जा सकता है, जिसमें सरकारी कर्मचारियों की संख्या में वृद्धि; अनुदान प्राप्त संस्थानों और स्थानीय निकायों जैसे विभिन्न गैर-सरकारी कार्यालयों में कार्यरत लोगों को पेंशन लाभ का विस्तार; विभिन्न वेतन संशोधनों का प्रभाव; वेतन सूचकांक की शुरूआत, और मृत्युदर में कमीं के परिणामस्वरूप सेवानिवृत्त लोगों को पेंशन का भुगतान लंबे समय तक होता है।
इस तरह हम वित्तीय आंकड़ों से जान सकते हैं जो वित्तीय बोझ 2002 में देश या राज्य की कुल आय या टैक्स से अर्जित रकम का 3 - 5 % हुआ करता था अब वह बढ़ कर 47 % तक जा पहुंचा है जिसे कम या स्थिर करना अत्यंत आवश्यक होता जा रहा है यदि इस बोझ को कम नहीं किया गया तो भविष्य में सभी तरह के सामाजिक व् अन्य खर्चों पर इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ने से कर्मचारियों की मासिक सैलरी तक देने में सरकारें असमर्थ हो सकती हैं | साधारण भाषा में समझें तो UPS में सरकार और कर्मचारी दोनों का अंशदान होने के कारण इसका बोझ सिर्फ सिर्फ सरकार के वित्तीय ढांचे पर नहीं पड़ता साथ ही इससे कर्मचारियों को मिलने वाले लाभ भी कम नहीं होते हैं उन्हें लगभग वे सभी लाभ मिलते रहेंगे जो उन्हें ओल्ड पेंशन स्कीम में मिल रहे थे. जो लोग ओल्ड पेंशन स्कीम लागू करने की बात कर रहे हैं वे सिर्फ अपने स्वार्थ अपने फायदे के लिए ऐसा कह और कर रहे हैं, ओल्ड स्कीम सिर्फ सरकार पर ही नहीं, बल्कि सभी नागरिकों पर वित्तीय बोझ है, क्योकि ये पैसा अंत में देना तो जनता को ही पड़ता है, या सरकार जनता पर टैक्स लगा कर वसूलती है जिससे सामान महंगा हो जाता है और महगाई आसमान छूने लगती है . | |
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