Skin त्वचा की देखभाल
स्किन की देखभाल कैसे करें:
Skin Care:
हमारी त्वचा हमारे शरीर का सबसे बड़ा अंग होती है, तथा हमारी स्किन हमारे शरीर के सभी जरूरी अंगो को ढक कर बाहरी वातावरण से बचाने के साथ साथ बाहरी बेक्टेरियल और तापमान से भी रक्षा करती है.
हमारी त्वचा हमारे शरीर की सुंदरता को बढ़ाने का काम भी बखूबी करती है.
हमारी त्वचा सामान्य शारीरिक कवर न हो कर एक काम्प्लेक्स अंग है जिसमें एक से अधिक अंग समाहित होते हैं, यदि हम शरीर की त्वचा का सेक्शन सूक्ष्दर्शी में देखें तो हमें उसमें बहुत से दूसरे छोटे छोटे अंग दिखाई पड़ते हैं.
हमारी त्वचा पानी,प्रोटीन, मिनरल, फैट, बाल आदि से मिल कर बनती है, जिसमें स्वीट ग्लैंड (पसीने की ग्रंथिया), स्पर्श तंत्रिका की बारीक़ शिराओं का जाल भी होता है इसलिए हमारा पूरा शरीर किसी भी तापमान या आघात को आसानी से स्पर्श द्वारा महसूस कर सकता है.
Skin Pigmentation:
हमारी त्वचा का रंग: हमारी त्वचा में रंगा कणिकाओं की ग्रंथियां (मेलेनिन ग्लैंड्स ) भी होती हैं जिससे हमारे शरीर के बाहरी आवरण के रंग का निर्धारण होता है, मतलब जितना ज्यादा मेलेनिन कण शरीर की त्वचा में होता है उसका रंग उतना ही डार्क या काला होता है. मेलेनिन कण सूरज की रोशनी में मौजूद अल्ट्रावॉयलेट किरणों से हमारे शरीर की रक्षा भी करते हैं, इसीलिए योरोपीय या गोरे लोगों को सूर्य की किरणों से त्वचा कैंसर होने का ख़तरा काले लोगों की अपेक्षा बहुत अधिक होता है.
Anatomy of Skin (त्वचा की संरचना ):
Epidermis- हमारी पतली सी दिखने वाली त्वचा में तीन परतें होती हैं, जिसमें सबसे ऊपर की लेयर (परत ) को इपिडर्मिस कहते हैं. यह केरेटिन और प्रोटीन से बनी होती है व् सबसे बाहरी अंग होता है.
Dermis- यह परत एपिडर्मिस के बाद मध्य की परत है जिसमें बहुत से छोटे छोटे अंग समाहित रहते हैं. इस परत त्वचा का अधिकांश भाग होती है.
Hypodermis - यह त्वचा की सबसे निचली परत होती है तथा ये फैट या चर्बी से बनी होती है.
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एपिडर्मिस की करती है :
What does the Epidermis do?
शरीर का सबसे बाहरी अंग होने के साथ साथ सबसे महत्वपूर्ण अंग भी है, एपिडर्मिस शरीर की सबसे बाहरी सुरक्षा दिवार होने के कारण, बाहर से होने वाले सभी आक्रमणों का सबसे पहले सामना करती है जिसकी वजह से बहुत बार ये कटी फट या झुलस भी जाती है
सबसे बाहरी दिवार होने के कारण एपिडर्मिस में खुद को बदलने या नया बनाने की भी काबिलियत होती है इसलिए हम रोज अपनी पुरानी त्वचा को धुल की तरह झाड़ते हैं या ये स्वयं झाड़ जाती है
हमारी त्वचा की ऊपरी परत 30 दिनों में अपनी पुरानी कोशिकाओं को बदल देती हैं साथ ही मेलेनिन की मात्रा के आधार पर ये हमारे शरीर को रंग (गोरा, सांवला या काला) भी देती है .
डर्मिस का क्या काम है :
What does the Dermis (Middle layer of Skin) do ?
हमारी त्वचा का लगभग 90 % भाग डर्मिस या मध्य त्वचा होती है .
प्रोटीन ग्रंथियां- मध्य त्वचा (डर्मिस ) में दो तरह के प्रोटीन पाए जाते हैं एक को कोलेजन और दुसरे को इलास्टिन कहते हैं .
कोलेजन त्वचा की कोशिकाओं को मजबूती देती है जबकि इलास्टिन स्किन की कोशिकाओं की फ्लेक्सिबिलिटी को बढ़ाती है. इलास्टिन के कारण स्किन का लचीलापन बना रहता है.
स्पर्श कोशिकाएं- त्वचा में मौजूद रोंए या बालों की जड़ें डर्मिस में मौजूद रहती हैं . डर्मिस में मौजूद नर्व सेल या कोशिकाएं हमें किसी भी स्पर्श का आभास करती हैं. इन्हीं स्पर्श कोशिकाओं के कारण हमें अपनी त्वचा द्वारा शरीर के बहार के वातावरण के गर्म ठन्डे , सुखद या असहनीय होने का आभास होता है .
तेल की ग्रंथियां- मध्य त्वचा या डर्मिस में तेल की ग्रंथियां भी होती हैं जिसके कारण त्वचा की कोशिकाओं को लचीला बनाने में मदद मिलती है, साथ ही हमारी कोशिकाओं में पानी के संग्रह को भी बैलेंस करती है.
इन तेलीय ग्रंथियों के कारण ही हमारी त्वचा अधिक तेलीय (Oily Skin), कम तेलीय (Dry Skin) होती है या यदि इन ग्रंथियों की संख्या कम हो तो त्वचा शुष्क भी हो सकती है.
पसीने की ग्रंथियां- मध्य त्वचा में पसीने की ग्रंथियां भी मौजूद होती है जो गर्मी लगने पर पसीने को त्वचा पर छोड़कर उसे ठंडा करने का काम करती है.
खून की शिराएं- मध्य त्वचा (डर्मिस ) में रक्त की बारीक़ शिराएं भी होती हैं जो डर्मिस और एपिडर्मिस में जरूरी पोषक तत्व उपलब्ध कराती हैं जिससे नई त्वचा की कोशिकाएं बंटी रहती हैं और त्वचा को स्वस्थ बनाकर रखती हैं.
निचली त्वचा या ह्यपोडर्मिस ( Hypodermis)
What is the Role of Hypodermis ?
ह्यपोडर्मिस या सबसे निचली त्वचा स्किन की सबसे चर्बी युक्त परत होती है ये ऊपरी दोनों परतों को कुशन या गद्दी का सहारा देने के साथ साथ त्वचा को मजबूती भी देता है .
ह्यपोडर्मिस में मौजूद ऊतकों के कारन ये शरीर की मांसपेशियों के साथ बंध बना कर उसे जोड़े भी रखती है. इसके साथ साथ तेलीय होने के कारण शरीर के तापमान को भी प्रबंधित करती है.
स्किन समस्याएं:
Skin Problems:
Skin infections:
A- फंगल स्किन इन्फेक्शन:
हमारी स्किन में होने वाले सबसे अधिक संक्रमण में से सबसे ज्यादा कॉमन समस्या है. फंगल इन्फेक्शन अधिकतर पैरों, कांख ( आर्मपिट) या उसके आसपास होने वाला संक्रमण है. गंदे पानी में अधिक समय बिताने या बार बार संपर्क में आने के कारण गंदे पानी से हमारे पैरों में फंगल इन्फेक्शन होने की सम्भावना बढ़ जाती है. सबसे अधिक होने वाले फंगल इन्फेक्शन हैं
1 - एथलीट फूट
2 - यीस्ट इन्फेक्शन
3 - रिंगवर्म
4 - नेल फंगस
5 - ओरल थ्रश
6 - डाइपर रेष
B- बेक्टेरियल स्किन इन्फेक्शन
हमारी त्वचा में बेक्टेरियल इन्फेक्शन तभी संभव है जब हम बेक्टेरिआ के संपर्क में आ जाते हैं और साफ़ सफाई न होने के कारण बेक्टेरिअ हमारे त्वचा में बालों की जड़ों से होता हुआ अंदर तक पहुँच जाता है. बेक्टेरिअ के संपर्क में आने के बहुत से कारण हो सकते हैं। बेक्टेरिआ के संपर्क में आने पर यदि हमारी त्वचा पर कोई घाव पहले से है तो ऐसी स्थिति में बेक्टेरिआ एकदम से हमारे रक्त/ खून में घुल सकता है, और हमारी त्वचा पर जल्द ही बेक्टेरियल इन्फेक्शन के लक्षण दिखने लगते हैं .
वातावरण से भी बेक्टेरियल इन्फेक्शन होने की सम्भावना प्रबल होती है , जैसे एंथ्रेक्स बेक्टेरियम हवा से फैल जाता है. स्टेफीलोकोकस और स्ट्रेप्टोकोकस हमारी त्वचा पर ही मौजूद होता है और साधारण समस्याएं पैदा करते हैं. कुछ इन्फेक्शन पूरी बॉडी पर फैल सकते हैं जबकि कुछ एक दो जगह पर ही बने रहते हैं जबतक उनपर बार बार हाथ लगा कर शरीर के अन्य भागों पर उस बेक्टेरिआ को नहीं फैलाया जाता। कुछ बेक्टेरियल इन्फेक्शन एक दुसरे से फ़ैल जाते हैं या साथ साथ रहने से भी फ़ैल सकते हैं. आसानी से फैलने वाले इन्फेक्शन हैं
1 - केलुलिटिस
2 - इम्पेटिगो
3 - बाइलस
4 - कोढ़
पूरे शरीर में फैलने वाले बेक्टेरियल इन्फेक्शन हैं
1 - सिफलिस
2 - ट्यूबरक्लोसिस (TB )
3 - लेप्टोस्पायरोसिस
C -वायरल स्किन इन्फेक्शन
वायरस भी स्किन इन्फेक्शन पैदा कर सकते हैं
1 - चिकेनपॉक्स
2 - वार्ट्स
3 - MT
4 - मीसल्स
5 - हैंड फुट और मुंह की समस्याएं
D -पैरासिटिक स्किन इन्फेक्शन
स्किन समस्याएं पैदा कर सकते हैं, जैसे जुवें, खटमल, स्कैबीज़ या क्यूटनियस लार्वा अटैक
साधारण लक्षण जो इन्फेक्शन के बाद दिखने शुरू हो जाते हैं जैसे-
लाल चकत्ते पड़ना, खुजली होना, मिर्च लगने जैसा अहसास होना, दर्द होना या बुखार आ जाना, फफोले बनना, पस पडना, स्किन रेशेस आना, त्वचा का बदरंग हो जाना, मुहांसे आना, यदि इनमें से कोई स्थिति बनती है तो डर्मेटोलॉजिस्ट या स्किन स्पेशलिस्ट से जरूर मिलें और नीम हकीमों से या घरेलू नुस्खों से बचें अन्यथा स्थिति भयावह भी हो सकती है.
डर्मेटोलॉजिस्ट या डॉक्टर के पास कब जाएं :-
-यदि शरीर पर दानें हो गए हैं और उसमें पस पड़ गया है तो देर न करें
-शरीर पर या कुछ हिस्से पर सूजन, लाल चकत्ते, रिंग, खुजली के साथ सूजन, दानों से खून आदि आने लगे तो
- उपरोक्त लक्षणों के साथ यदि बुखार भी आ रहा हो तो
इस तरह की स्थिति में स्किन इन्फेक्शन स्किन से नीचे ऊतकों में ऑफ़ ऊतकों से खून की शिराओं से होते हुवे शरीन के अंदर तक फैल सकता है इसलिए तुरंत डॉक्टर से सलाह जरूरी है .
स्किन इन्फेक्शन से कैसे बचें :
- साफ़ सफाई का ध्यान रखें या रोज नहाएं
-तेलीय स्किन पर ऐसी स्किन क्रीम का प्रयोग करें जो ओयेली स्किन के इन्फेक्शन को कम करती हो, ड्राई स्किन पर प्रयोग होने वाली क्रीम का असर उल्टा ही होगा
स्किन क्रीम किसी अच्छे ब्रांड का होना अति आवश्यक है
-इन्फेक्शन जैसे चेचक आदि वक्सीनशन से भी कंट्रोल किये जा सकते हैं .
Skin Infection:
क्यों होता है स्किन इन्फेक्शन
- अत्यधिक ऑयली स्किन वाले व्यक्तियों को स्किन इन्फेक्शन होने की सम्भावना दोगुनी होती है.
-बूढ़े व्यक्तियों को भी कमजोर इम्यून होने के कारण स्किन इन्फेक्शन आसानी से हो जाता है .
-शूगर के मरीजों को भी स्किन इन्फेक्शन आसानी से हो जाता है .
-साफ़ सफाई से न रहने वालों को भी स्किन इन्फेक्शन होने की संभावना तीन गुनी अधिक होती है .
-बेड पर पड़े मरीजों को जिन्हें बेड़ से उठने या करवट तक लेने में परेशानी होती है उन्हें अक्सर खतरनाक स्किन इन्फेक्शन हो जाते हैं और उनकी स्थिति और भी बदतर हो जाती है .