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Who are Indian by Race and From where they Came

भारतीय कौन हैं और ये भारत में कहाँ से आकर बसे थे

भारत में पाए जाने वाले लोगों में किसी एक जाति की बहुलता न हो कर सैकड़ों जातियां हैं और इन्ही सभी जातियों-समाजों से मिल कर भारतीय बनते हैं


कौन हैं भारतीय ?

भारत में आदि काल से रहने वाली विभिन्न जातियां जनजतियाँ की किसी एक ग्रुप से जुड़े हुवे नहीं हैं यहाँ रहने वाली सभी जातीय बहुत सारी जातियों का लगातार आपसी संकर और संस्कारों के मिश्रण से मिल कर बनता - बढ़ता रहा है. 

(इस लेख को  प्राचीन सनातन, बौद्ध तथा जैन ग्रन्थों में उल्लिखित जनसमूहों की शोध  की जानकारी से संकलित  किया गया है. तथा "जो है जैसा है" का शुध्द रूप से रखने की कोशिस की गयी है.)

इन ग्रंथों के आधार पर तथा वेदों के वैज्ञानिक अध्ययन से जो  स्थिति सामने उभरती है, उसके अनुसार पुरातन भारतियों के पूर्वज अलीना ( रिग वेद  7.18.7 ), आंधरा, अनु ((रिग वेद  1.108.8, रिग वेद  8.10.5)), भजेरथा, भलाना और भारता कबीले के वंशजों के मिश्रण से बना है।  

इन कबीलों में भारता कबीला मुख्य रूप से उत्तरभारत में खूब फला फूला। भारता कबीला मुख्य रूप से वेदों में उल्लेखित आर्यों के कबीले जो रथ और घोड़ों पर सवार हो कर आधुनिक पाकिस्तान पंजाब और भारत के पंजाब के मैदानों में नदियों को पार कर आये थे, और जिन्होंने आर्यों और अनार्यों के कबीलों के बीच हुवे युद्ध में हिस्सा लिया था. जो उस समय चल रही शक्ति, मवेशी और जमींन-मैदानों  पर नियंत्रण की लड़ाई में सीधे सम्मिलित थे तथा जो नियंत्रण के लिए हजारों साल तक चलता रहा.

ऋग्वेद में उल्लेखित कबीलों में से मुख्य रूप से चेदि, दासा,दस्यु,डरबिका,द्रुह्युस (( ऋग्वेद  1.108.8, RV 8.10.5), गांधारी, गुंगु, इक्ष्वाकु कबीला या राजवंश, कृवि, किकता, कुरु,महीना, मलणखरा, मत्स्य,नहुसा, पख्ता, पनि, पारावत, परसू, पुरु, रूसामा मंडल, सारस्वत, त्रित्सु, यदु कबीले थे जो बाद में राजवंश भी बने.

इन कबीलों जनजातियों में यदु कबीले का तुर्वशु कबीले के साथ बार बार उल्लेख होता रहा है. ये दोनों कबीले प्राचीन कल में उत्तर भारत में बसने वाले वाले असंख्य कबीलों में से मुख्य कबीले थे.
जब भारता कबीला और पुरु कबीला मंडलों के भारतीय उपमहाद्वीप में आकर बसने लगे थे, उस समय तक यदु और तुर्वसु कबीला मंडल, भारतीय उपमहाद्वीप के उत्तरी क्षेत्रों में पहले ही बस चुके थे। 

इनमें यदु कबीले के समुह यमुना नदी के साथ साथ लगभग पूरे उत्तर भारत में बसे हुवे थे. 
ऋग्वेद में उल्लेख आता है, की भगवान् इंद्र ने यदु और तुर्वशु कबीले को जमुना की बाढ़ में डूबने से  बचाया था. (ऋग्वेद के इस वर्णन को बाद में गोवेर्धन पर्वत और इंद्रा का प्रकोप के साथ कृष्ण द्वारा लोगों को पर्वत उठा कर बचाना जैसी धार्मिक कहानियो में परिवर्तित कर दिया गया.)  इसके साथ ही ये भी उल्लेख मिलता है की इंद्र भगवान् इन कबीलों को बहुत दूर से यहाँ ले कर आये थे. दस राजाओं की लड़ाई में भारता कबीले ने यदु मंडल को हराया था. तुर्वसा को पांचाल से जोड़ कर देखा जाता है. 
(दस राजाओं की लड़ाई जो बाद में महाभारत की लड़ाई के रूप में बदल दी गई तथा उसमें बहुत सी अन्य कहानियां भी उसमें मिला दी गयी.)

जनपद काल के आरम्भिक चरण के लोग और कबीले (1700  ईसापूर्व से 1500  ईसापूर्व )



प्राचीन भारत जिसे उस समय आर्यावर्त कहा जाता था (आर्यावर्त मतलब आर्यों द्वारा घेरा गया स्थान (हरियाणा-पंजाब  में आज भी ऐसा स्थान जिसे बल या साफ़ सफाई के बाद अपने कब्जे में कर लिया जाता है उसे "घेर" कहा जाता है), यहाँ पर 1700 BC तक पांच स्वतन्त्र महाजनपद (पञ्चजन) अस्तित्व में आ चुके थे, ये जनपद अनु, द्रुह्यु, पूरू, तुर्वसा, और यदु थे. ये सब भारत में आकर बसे अलग अलग जनजातियों के समुदाय थे.
इनमें तुर्वसा पुरातन भारतीय आर्य जनजातियों की एक शाखा थी इनसे पहले जो जनजातियां भारत में रह रही थी वह मुख्य रूप से आदिम जनजातियां थी जो संगठित नहीं थी और पशुओं को समूहों में पालने के बजाय जंगली पशुओं के शिकार आदि पर निर्भर थी. 
इस तरह हम देखते हैं की भारत के लोग किसी एक कबीले, जनजाति या समूह का प्रतिनिधित्व नहीं करते, बल्कि विभिन्न समूहों जनजातियों के मिलने से बने हैं जो लगातार  हजारों साल तक भारत की उपजाऊ और गर्म जलवायु जो की फसलों को उपजाने और पशुओं को चराने के लिए अति उत्तम थी, पर लगातार भूमि और नियंत्रण के लिए मध्य पूर्व एशिया की और से जो की आज का ईरान का बड़ा क्षेत्र के साथ दक्षिणी रूस उज्बेकिस्तान के क्षेत्रों के साथ साथ यूरोप की ओर से आने वाली जनजातियों के झुंड के झुंड के लिए एक आकर्षक स्थान बना रहा और लोग बड़ी संख्या में सुदूर स्थानों से आ कर, उत्तर भारत के उपजाऊ मैदानों पर नियंत्रण के लिए लड़ते रहे और आगे बढ़ते रहे.

भारत के कुछ विद्वान इससे सहमति नहीं रखते, किन्तु उसके पीछे कोई ठोस वैज्ञानिक आधार न हो कर कुछ काल्पनिक धार्मिक ग्रन्थ हैं, आज के समय में जब विज्ञानं इतना आगे बढ़ चूका है तब किसी भी बात को प्रस्तुत करने और उसे सभी के द्वारा मनवाने में वैज्ञानिक आधार चाहिए, 
 
मोहनजोदडो के साथ साथ राखी गाढ़ी में मिली अस्थियों की कार्बोन डेटिंग करने के बाद भी ये ही साबित होता है की आर्य भारतीय नहीं थे, ये लोग बाहर से सम्भवतः ईरान की पहाड़ियों और मैदानों से होते हुवे व् नए नए उपजाऊ और जानवरों के पूरे साल चरने लायक घास से भरे मैदानों की खोज में भारत में आकर बसते रहे और धीरे धीरे यहाँ रहने वाली अन्य जातियों समूहों के साथ घुल मिल गए. 


रामायण की मूल कहानी में भी आर्यों और अनार्यों (दस्युओं, राक्षसों, मलिच्छ या मारीच  तथा अन्य वन में रहने वाली जनजातियाँ )  की भूमि, जमीनों पर वास्तविक नियंत्रण की लड़ाई ही है, जिसे बाद में अलग अलग घटनाओं के साथ जोड़ कर प्रस्तुत किया गया, यहाँ बता दें की राक्षस या दस्यु कोई अति शक्तिशाली बहुत बड़े आकर के प्राणी नहीं थे बल्कि सामान्य  भारतीय मूल जनजातियों के नाम थे. 

उस समय भारत में आने वाली सभी आर्यन या दूसरी जनजातियों का मुख्य काम पशु पालन था और खेती धीरे धीरे विकसित हो रही थी, साथ ही इनकी संस्कृति भी भारत में पहले से मौजूद जनजातियों की सस्कृति से भिन्न थी, यहाँ के मूल निवासी या तो अति विकसित सामाजिक संगठनों द्वारा बनाये गए शहरों में निवास कर रही थी और उनका मुख्य काम सामान की व्यापार प्रणाली जैसा या मिलता जुलता कुछ था, ( मोहनजोदड़ो में ऐसे ही सबूत मिले हैं की वहां पर व्यापारियों की एक बड़ी जनसँख्या निवास कर रही थी और जो विशेष रूप से लड़ाकू जातियां नहीं थी, 

बाहर से आयी हुई लड़ाकू जातियों ने इन शहरों को नष्ट किया ऐसा प्रतीत होता है. दूसरी मूल भारतीय जातियां जंगलों में ही रह रही थी और अपनी सभी जरूरतों के लिए जंगलों पर निर्भर थी, बाहर से आयी हुई लड़ाकू जनजातियों ने जब इन मूल जनजातियों को उनके स्थानों से खदेड़ना शुरू किया तब यहाँ पर दोनों समूहों में जंग छिड़ गयी जो सैकड़ों साल चलती रही थी.